फेसबुक पर चल पड़ा पार्टियों का सिलसिला
हम भी गये पार्टी में जब इनविटेशन मिला
किसी की शादी की पार्टी हो या जन्मदिन पर
हमने तो खाना बनाना बंद कर दिया घर पर
लोगों से मिलकर कुछ मन भी बहलने लगा
पर उनकी हरकतें देखकर मन डरने लगा
एक पार्टी थी कहीं किसी के जन्म दिन पर
मित्र दिल के बड़े अच्छे थे और सुन्दर था घर
रिश्तेदार और मित्रों की थी वहाँ भरमार
तो पागलों की भी संख्या थी बेशुमार
काफी लोग जो लगते थे बिलकुल नार्मल
जब पर्दा उठा तो लगी फरक कुछ शकल
उनकी बातें जब सुनीं तो लगे अटपटे
वहाँ जोगी भी खड़े थे पहने जूते फटे
एक बाबा थे वहाँ जिनकी दाढ़ी थी लम्बी
नाम था उनका पागल बाबा या फिर पी.बी.
रह-रह के खुजा रहे थे वो अपनी लम्बी दाढ़ी
और मुँह में चबा रहे थे कुछ पान सुपाड़ी
तरह-तरह के नमूने के वहाँ आये थे लोग
सबके सब जुटे थे लगाने में मिष्ठान का भोग
कई लोग तो खड़े थे अपनी ही बातों में अटके
कुछ खाने के इंतजार में लगे भटके-भटके
पकवान के थाल जैसे ही लाये गये वहाँ
तो और भी हुजूम इकठ्ठा हो गया वहाँ
आकर लाइन में लग गये एक दूजे से सटे
प्लेटें और नैपकिन सबके बीच में बंटे
कुछ ने खायी हर एक मिठाई जमकर
समोसों पे तो जमी थी सबकी ही नजर
ठूँस-ठूँस के खाया सबने जितना खा सके
फिर कुछ बैठ गये अपने पेट को पकड़ के
बाद में कुछ लोग लगने लगे थोड़े सिक
तो भीड़ भी धीरे-धीरे कम हुई तनिक
लोगों का दिल पार्टियों के लिये क्यों पागल है
सोच रही हूँ कि मुफ्त का खाना कहाँ कल है.
lajwaab likha hai........
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
ReplyDeleteसंजय जी, बहुत-बहुत धन्यबाद.
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