Thursday, 22 July 2010

जब आँख फड़की

आज सुबह हुई और जैसे ही खुली
दायीं आँख की खिड़की
तो वो जोर-जोर से फड़की
मन को होने लगा बड़ा खटका
घंटों को रहा भटका-भटका
हो रहा था बड़ा अंदेशा
कहाँ से मिलेगा बुरा संदेशा
कुछ देर बाद एक खबर आई
तो मैं बहुत ही घबराई
एक दोस्त ने बताया की मैंने
आज उसकी जान बचायी
मैंने पूछा की वो कैसे भाई
बोला, '' दीदी, आपकी दुआ रंग लाई
जा रहा था आफिस को बस
गया मैं ट्रैफिक में फंस
आ रही थी बहुत झुंझलाहट
वाहन जा रहे थे घिसट-घिसट
हार्न का शोर और लोगों में खट-पट
लोग गुस्से में देखते हैं पलट-पलट
काम के लिये मैं हो रहा था लेट
कुछ लोग नहीं करते हैं इंडीकेट
ऐसे ही एक ट्रक सामने आया
उसका मूव मैं समझ न पाया
ब्रेक लगाने में कुछ टाइम लगा
हड़बड़ी में वो भी दे गया दगा
अचानक एक ट्रक ने मारी टक्कर
साइकिल संग गिरा मैं दूर उछल कर
मेरा सर एक स्थिर ट्रक से टकराया
हेलमेट ने तो सर को बचाया
पर जिसकी बहना का हो ऐसा प्रताप
उस भाई को क्या हो संताप
और आपकी दुआ मौत से खींच लाई. ''
तो सुनकर मैं बहुत सकुचाई
मैंने कहा, '' मेरे प्यारे भाई
मैंने कहाँ तुम्हारी जान बचाई
उस ऊपर वाले की है सब दुहाई
वही सबकी करता है भलाई
उसकी दया से तुम सलामत हो
अपने वीवी बच्चों की अमानत हो
तुम्हारी जान बची बहुत गनीमत है
तुम्हारी फेसबुक पर बहुत कीमत है
आज मौत को तुमने दुत्कार दिया
और हम लोगों पर उपकार किया
तुम मुझे प्यार से देते हो सम्मान
इतना तो रहता है मुझको ध्यान
मैं तो हूँ एक मामूली सी इंसान
रक्षा करने वाला तो है भगवान
तुम ऐसे ही हँसते-मुस्कुराते रहो
और ऊपर वाले के गुन गाते रहो.''

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