Thursday 9 September 2010

बिजली की महिमा

जब-जब बिजली का वोल्टेज डाउन होता है
अंदेशा होने लगता है दिल धक-धक होता है

अंधेरों से इंसा ने समझौता न किया अब तक
बिजली की वेवफाई से बड़ा बुरा हाल होता है

असली झटका लगता है जब ये नहीं होती है
फिर इसके लौटने का सबको इंतज़ार होता है

बिखरी होती है आसमां पे रोशनी सितारों की
जमीं पे बिन बिजली के कष्ट बहुत होता है

रुतबा है इसका और जुल्म भी कर जाती है
अक्सर ही बिन इसके अँधेरों से साथ होता है

मजबूर कर दिया है इसने इतना पब्लिक को
कि अब रो-रोकर काम मोमबत्ती से होता है

बे-इन्तहां कर दी बिजली वालों ने अब इतनी
लोग कब सोयें या जागें उन्हें ना पता होता है

आदत पड़ी हुई है इसकी सभी को इतनी बुरी
कोई माडर्न टेकनोलोजी का काम नहीं होता है

कहती रहती है अलविदा अब अक्सर बेरहम
इंटरनेट कब होगा या नहीं ना ये पता होता है.

Tuesday 7 September 2010

दूर घाटी में

दूर घाटी में मचल रही है
कोई निर्झरा
शून्य नीलाकाश को निरख रही
है चुप धरा
मुस्कुराती वादियाँ खिली-खिली
सी धूप में
स्वप्नमयी हो उठी हैं खोयी
अपने रूप में
ढल रहा है दिन मगर इन्हें तो
होश ही नहीं
श्रंग झिलमिला उठे हैं रश्मियाँ
बिखर गईं
भाग रही धूप घिर रही है
साँझ भी घनी
नीरवता व्याप्त जैसे हो
युगों की बंदिनी
आँचल है फैल रहा धरती पे
छाँव का
पूछ रही रेशमी सी धूप पता
गाँव का
काँपती सी दिख रही हैं पंक्तियाँ
चिनार की
यह झरे से फूल कह रहे कहानी
हार की
मादकता फैल रही फूलों की
महक से
शांत है समीर हो रहे विहंग
स्तब्ध से
झाँक रहा है विजन में व्योम भी
भरा-भरा
दूर घाटी में मचल रही है कोई
निर्झरा.

ऐसे ही जायेंगे

हम खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जायेंगे
ना हाथ में है कुछ ऐसा जो दुनिया को दे जायेंगें

कुछ बक्त बिताने को ही एक मेहमां से आये हैं
यादों के कुछ लम्हे देकर फिर रुखसत हो जायेंगे

फैलाते हैं खुशबू को फूल खिलें जो डाली-डाली
बिन मांगे कुछ दुनिया से वो भी मुरझा जायेंगे

पर कुछ लोग दिखाते अहंकार ये नादानी उनकी
टेंशन लेते नहीं किसी से वो टेंशन देकर जायेंगे

नया जमाना नये लोग हैं नयी सोहबतें हैं उनकी
आने वाली पीढ़ी को कुछ और पंख लग जायेंगे

बड़े चतुर हैं लोग ना सोचें कौन मरे या जिये यहाँ
अपना उल्लू सीधा कर ये लोग तिड़ी हो जायेंगे

ढोंगी, भोगी, जोगी जो हैं सब मतलब के साथी
वतन को ये जाने के पहले ही चौपट कर जायेंगे

बेटी की करने को शादी या घर के खर्च उठाने को
कुछ लोग ले रहे हैं कर्जा वो उसमें ही मर जायेंगे

गंदे नालों के पास घरों में इंसा रहते हैं चिथड़ों में
बदबू में जो जीते आये वो उसमें ही सड़ जायेंगे

नेता जी बैठे हैं घर में कहते हैं वो बीमार बहुत हैं
पैसे अगर सुँघाओ तो खटिया पर लात जमायेंगे

सांवरे सलोने कान्हा

ओ, मुरली वाले सब भक्तों के रखवाले
अब सुख-दुख हमारा सब तेरे ही हवाले.

यशोदा के लाल और बृज के नंदलाला
छिपे कहाँ पे तुम कान्हा सांवले सलोने
दिनभर घूमते सभी गोपियों को छेड़ते
माखन चुराके खाओ फिर लगते हो रोने

मैया मरोड़े कान जब जिद तुम करते
रूठ जाते और फिर रोकर भी सताते हो
तुम हो बड़े नटखट भाग जाते झट-पट
हठ करते और फिर भोले बन जाते हो

बंशी को बजाकर तुम सबको लुभाते हो
सबके ही मन में तुम बसे हो नंदलाला
बड़े चितचोर हो तुम देखो उन्हें छुपकर
गायों को चराने जायें झूमें सभी ग्वाला

जब गोपियों संग नाचो बरखा-फुहार में
उड़-उड़ लिपटे तुमसे राधा की चुनरिया
बृज की बालायें आयें नदिया के तट पर
मतवाली सी सभी तुझे घेरतीं सांवरिया

ओ, मुरली वाले सब भक्तों के रखवाले
अब सुख-दुख हमारा सब तेरे ही हवाले.

चाँद तुम चाँदनी मैं तेरी

जमीं आसमा का फरक है तो क्या
तुम धड़कनों में आकर बसे हो मेरी
चाँद तुम हो मेरे चाँदनी मैं तेरी.

आसमा पे हो तुम मैं हूँ कदमो तले
मैं भटकती यहाँ तू वहाँ पे जले
महफ़िलें सजी है तारों की वहाँ
हैरान सा है हर नजारा जहाँ
तन्हाइयों का दामन है फैला हुआ
साज तुम हो मैं रागिनी हूँ तेरी

जमीं आसमा का फरक है तो क्या
तुम धड़कनों में आकर बसे हो मेरी
चाँद तुम हो मेरे चाँदनी मैं तेरी.

अजनबी रास्तों पे कदम के निशां
मंजिलों की तरफ बढ़ रहे परेशां
अकेले ना तुम जा सकोगे कहीं
रात की शबनमी पलकों पे गिरा
दामन सा मैं तुमने पकड़ा सिरा
तुम मेरे हमकदम मैं हूँ साया तेरी

जमीं आसमा का फरक है तो क्या
तुम धड़कनों में आकर बसे हो मेरी
चाँद तुम हो मेरे चाँदनी मैं तेरी.

सावन की विदाई

सुहाना सा मौसम
हवा का मचलना
तितलियों का उड़ना भंवरों का गुंजन
पल-पल क्षितिज में
सिमटती है लाली
नीरवता भरता है खगकुल का कुंजन

राग अपना सुनाते हैं
झींगुर कहीं पर
आती है सांवली संझा कुछ लजाकर
और आँगन में
मदमाती है रातरानी
हवा में खुशबू छा जाती है बिखरकर

बरसने के पहले
गगन पर उमड़ती
उन काली घटाओं का लहराता दामन
चाँदनी को छुपाये
उतरती है यामिनी
बूँदों की रिमझिम से भरता है आँगन

फूलों और पातों से
माँगता है विदाई
इठलाती बहारों का दामन पकड़ कर
भिगोकर के
मखमली चूनर धरा की
अब रो रहा सावन उससे लिपट कर.