फिर भर-भर आईं ये पगली
अब इनको छलक के जाना है...
मौसम बदला बादल छाये
अब इनको बरस के जाना है
ये बोझिल मन होता विन्हल
अब इसको कुछ समझाना है
मन को फिर तम ने आ घेरा
यह कैसा एक ताना-बाना है
आघात सह रहा मन कितना
गिर-गिरकर खुद उठ जाना है
कब सुख - दुख की ऋतु आये
अब इसको क्या समझाना है
इन आंधी-तूफानों में फंसकर
तिनका - तिनका उड़ जाना है
आँखों के पास नहीं कुछ भी
बस आंसू का भरा खजाना है
पलकों पर जो अटके हैं आंसू
अब इनका तो यही ठिकाना है
फिर भर-भर आईं ये पगली
अब इनको छलक के जाना है...
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