Monday 28 June 2010

वरदान दो माँ

बिन तुम्हारी कृपा के किस तरह मैं गीत गाऊँ
शब्द हैं मेरे अधूरे किस तरह कविता रचाऊँ
भाव कुछ ऐसे मुझे दो विश्व के कल्याण को माँ

आज तुम वरदान दो माँ.

विस्तार दो मेरी कल्पना को शब्द का कुछ कोष दो
लेखनी रुक ना सके और भाव को निर्मल करो
शीघ्र ही तुम दूर कर दो बुद्धि का अज्ञान यह माँ

आज तुम वरदान दो माँ.

लेखनी में वह शक्ति भर दो कह सके सारी व्यथायें
और बाकी जो भी हो ना लेखनी से छूट जाये
जो तेरी गरिमा बढायें कुछ वह ऐसे गान दो माँ

आज तुम वरदान दो माँ.

कमल चरणों में बिठाकर तुम मुझे आशीष दे दो
कर सकूँ सेवा तुम्हारी तुम मुझे यह भीख दे दो
गीत जो कुछ भी लिखूँ उसमें तेरी मुस्कान हो माँ

आज तुम मुझे वरदान दो माँ.

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