Monday 28 June 2010

इधर देख आली

अब आकर इधर देख आली.

इस निर्झर की धारा में
यह झिलमिल सा क्या होता
जैसे चाँदी का सजलगात
क्या कोई बहा
गया है ढेरों बेला
के फूल आज

अब आकर इधर देख आली.

या नैसर्गिक आभा ले
इस संध्या बेला में
करने को अठखेली
है कोई अप्सरा उतरी
जो भटक गयी
है यहाँ आज

अब आकर इधर देख आली.

या लगता कुछ ऐसा
कुछ दिव्य लोक के वासी
मानसरोवर से कुछ
हँस यहाँ पर आये
अब करते विहार
जो पँक्ति -बाँध

अब आकर इधर देख आली.

या फिर संध्या होने से
पाकर एकांत इस तट पर
कुछ तारे टूट गगन से
गिर पड़े सलिल आँचल में
जो टिमटिम से करते
तैर रहे हैं पास-पास

अब आकर इधर देख आली.

या सुंदर सी जलपरियाँ
जो श्वेत वसन में सजकर
धरती की शोभा लखने
आयीं समुद्र के तल से
वह सब मिलजुलकर
तैर रही हैं एक साथ

अब आकर इधर देख आली.

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