Monday, 28 June 2010

चाँदनी

है उतर गगन
से तू आती
जब चंदा की
खुलती मधुशाला
खो देता होश
तिमिर अपना
तेरे नयनों की
पीकर हाला.

करके कटाक्ष
इठलाती रहती
ओ, फूलों सी
कोमल उज्ज्वला
तम से खेले
तू आँखमिचौली
फिर छिप कहीं
जाती है चपला.

फैलाये तू अपना
मधुर हास्य
तुझमें ना कुछ
है अंतर आया
ओ, सुहासिनी
अब बता जरा
है कहाँ से
चिर यौवन पाया.

1 comment:

  1. है उतर गगन
    से तू आती
    जब चंदा की
    खुलती मधुशाला
    खो देता होश
    तिमिर अपना
    तेरे नयनों की
    पीकर हाला.

    sundar vimb!!!!

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