मिट्टी, कांच और धातु के
कितने तरह के दिये
बनाये जाते हैं
जलाये जाते हैं,
बुझाये जाते हैं
और हम मानव भी
मिट्टी के नये दिये की तरह
हाड़-मांस के पुतलों के
आकार में
धरती पर आते हैं
जलते हैं, टिमटिमाते हैं
कभी-कभी साथ मिलकर
खास अवसरों पर
दीपावली की तरह ही
हँसते हैं
रोते हैं
जगमगाते हैं
परेशानियों, मुसीबतों और
दुखों के थपेड़े खाकर भी
जलते रहते हैं
अच्छे बुरे कर्मों को कर
प्रकाश फैलाते हैं
फिर जीवन की लौ के बुझते
उन्ही मिट्टी के दियों से
गल जाते हैं
और मिट्टी में मिल जाते हैं.
bahut sundar..... aaj phli baar aapke blog par aana hua,bhut achha lga....
ReplyDeletemaanav deep...!
ReplyDeleteinsaani chiraag...........!!!
maati kaa hi diyaa huaa naa shanno ji..?
नए साल पर हार्दिक शुभकामना .. आपकी पोस्ट बेहद पसंद आई ..आज (31-12-2010) चर्चामंच पर आपकी यह रचना है .. http://charchamanch.uchacharan.blogspot.com.. पुनः नववर्ष पर मेरा हार्दिक अभिनन्दन और मंगलकामनाएं |
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteअनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.
आप को भी सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए...
ReplyDelete*काव्य-कल्पना*:-दर्पण से परिचय
*गद्य सर्जना*:-पुराने साल की कुछ यादे
सुमन जी, मनु जी, नूतन, डोरोथी और सत्यम...
ReplyDeleteआप लोगों को मेरी रचना सराहने व नववर्ष की शुभ कामनाओं के लिये बहुत-बहुत धन्यबाद. आपको भी नववर्ष मंगलमय हो...सबका जीवन समृद्धि व उल्लास से परिपूरित हो.
मानव जीवन का सरल अंदाज़ मै चित्रण करके बताया है आपने दोस्त की मानव मिट्टी से बना है और इसी मै हमे मिल जाना है !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अंदाज़ मै लिखी गयी रचना !
आज पहली बार आपके ब्लॉग मै आई और आना सफल हुआ !
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteहिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
धन्यवाद....
satguru-satykikhoj.blogspot.com
सच है ये शरीर भी तो दिए की तरह ही है ... संवेदनशील रचना है ..
ReplyDeleteपहली बार आपको पढ़ा .अच्छा और भाव प्रधान लिखती हैं आप. बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteमीनाक्षी जी, राजीव जी, दिगंबर जी, और कुँवर जी,
ReplyDeleteआप सबकी प्रशंसा और प्रोत्साहन के लिये साभार धन्यबाद.
वाह ! शन्नो जी.....चोला माटी का हे रे ....सुन्दर...
ReplyDeleteआपकी कविता वटवृक्ष में पढी, आपका ब्लॉग देखा, बहुत अच्छा लगा , दिल्ली हिन्दी भवन में ब्लॉगर्स सम्मेलन में भी आपकी चर्चा सुनी । बधाई स्वीकारें......
ReplyDeleteअत्यंत ही खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteमनोज जी, रचना और ब्लाग की सराहना के लिये हार्दिक धन्यबाद. और दिल्ली हिंदी भवन में ब्लागर्स सम्मलेन में मेरा नाम आया इसके बारे में आपसे जानकर बहुत खुशी हुई.
ReplyDeleteश्याम जी एवं तीसरी आंख जी, रचना की प्रशंसा के लिये आप लोगों का हार्दिक धन्यबाद.
ReplyDeleteफिर जीवन की लौ के बुझते
ReplyDeleteउन्ही मिट्टी के दियों से
गल जाते हैं
और मिट्टी में मिल जाते हैं.
.sach sabkuch mitti mein mil jaata hai lekin sab jaante hue bhi insaan bhag raha hai, bas bhag raha hai ek-dusare ke pechhe.
bahut badiya jeewan ki yatharta ko batlati sundar rachna..
आपकी टिप्पणी के लिये आभार सहित बहुत धन्यबाद, कविता जी.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteअनूठे शब्द...
सेमंत जी, आपका बहुत धन्यबाद.
ReplyDeleteफिर जीवन की लौ के बुझते
ReplyDeleteउन्ही मिट्टी के दियों से
गल जाते हैं
और मिट्टी में मिल जाते हैं.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
परन्तु,क्या हम केवल शरीर मात्र ही हैं,shanno जी.
आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
राकेश जी, स्वागत है आपका और रचना की सराहना के लिये बहुत धन्यबाद. ये तो शरीर है जो नश्वर है वरना अंतरात्मा भी बहुत कुछ सहती और कहती है. आपका ब्लाग भी शीघ्र देखूँगी. नव वर्ष व स्वतंत्रता दिवस की आपको भी बहुत शुभकामनायें.
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