Saturday 28 January 2012

संध्या बेला

रंग बिखरा सांवला गोधूलि बेला में
खामोश सी दिशायें हो रहीं हैं अनमनी
पंखुड़ियाँ फूलों की बिखर गईं टूटकर
झकझोरती है पेड़ों को पवन सनसनी l
तड़ाग की जलराशि में ना कोई हलचल
मूंदकर आँखों को अब सोई है कुमुदिनी
दिन ढले ही शाम का आँचल फिसलता
अब रात की पलकें भी हो रही हैं घनी l
आकाश पर मुस्कुराता है चाँद मंद-मंद
शाखों में कहीं होगी उलझी सी चाँदनी
आँचल संभाल अपना काजल को डाल के
तारों की रोशनी में ठिठकी है यामिनी l

2 comments:

  1. बहुत ही मधुर प्यारी प्यारी सी प्रस्तुति.
    पढकर मग्न हो गया है मन.
    पहली दफा आपके ब्लॉग पर आया हूँ.
    आपके सुलेखन से बहुत प्रभावित हूँ,
    आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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  2. माफ कीजियेगा शायद पहले भी आ चूका हूँ.
    आपका फालोअर भी बना हुआ हूँ.
    मेरे डेश बोर्ड पर आपकी प्रस्तुति
    मिस हो रहीं हैं.इसीलिए याद नहीं रहा.

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