रंग बिखरा सांवला गोधूलि बेला में
खामोश सी दिशायें हो रहीं हैं अनमनी
पंखुड़ियाँ फूलों की बिखर गईं टूटकर
झकझोरती है पेड़ों को पवन सनसनी l
तड़ाग की जलराशि में ना कोई हलचल
मूंदकर आँखों को अब सोई है कुमुदिनी
दिन ढले ही शाम का आँचल फिसलता
अब रात की पलकें भी हो रही हैं घनी l
आकाश पर मुस्कुराता है चाँद मंद-मंद
शाखों में कहीं होगी उलझी सी चाँदनी
आँचल संभाल अपना काजल को डाल के
तारों की रोशनी में ठिठकी है यामिनी l
बहुत ही मधुर प्यारी प्यारी सी प्रस्तुति.
ReplyDeleteपढकर मग्न हो गया है मन.
पहली दफा आपके ब्लॉग पर आया हूँ.
आपके सुलेखन से बहुत प्रभावित हूँ,
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
माफ कीजियेगा शायद पहले भी आ चूका हूँ.
ReplyDeleteआपका फालोअर भी बना हुआ हूँ.
मेरे डेश बोर्ड पर आपकी प्रस्तुति
मिस हो रहीं हैं.इसीलिए याद नहीं रहा.