Tuesday 7 September 2010

ऐसे ही जायेंगे

हम खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जायेंगे
ना हाथ में है कुछ ऐसा जो दुनिया को दे जायेंगें

कुछ बक्त बिताने को ही एक मेहमां से आये हैं
यादों के कुछ लम्हे देकर फिर रुखसत हो जायेंगे

फैलाते हैं खुशबू को फूल खिलें जो डाली-डाली
बिन मांगे कुछ दुनिया से वो भी मुरझा जायेंगे

पर कुछ लोग दिखाते अहंकार ये नादानी उनकी
टेंशन लेते नहीं किसी से वो टेंशन देकर जायेंगे

नया जमाना नये लोग हैं नयी सोहबतें हैं उनकी
आने वाली पीढ़ी को कुछ और पंख लग जायेंगे

बड़े चतुर हैं लोग ना सोचें कौन मरे या जिये यहाँ
अपना उल्लू सीधा कर ये लोग तिड़ी हो जायेंगे

ढोंगी, भोगी, जोगी जो हैं सब मतलब के साथी
वतन को ये जाने के पहले ही चौपट कर जायेंगे

बेटी की करने को शादी या घर के खर्च उठाने को
कुछ लोग ले रहे हैं कर्जा वो उसमें ही मर जायेंगे

गंदे नालों के पास घरों में इंसा रहते हैं चिथड़ों में
बदबू में जो जीते आये वो उसमें ही सड़ जायेंगे

नेता जी बैठे हैं घर में कहते हैं वो बीमार बहुत हैं
पैसे अगर सुँघाओ तो खटिया पर लात जमायेंगे

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