Tuesday 7 September 2010

सावन की विदाई

सुहाना सा मौसम
हवा का मचलना
तितलियों का उड़ना भंवरों का गुंजन
पल-पल क्षितिज में
सिमटती है लाली
नीरवता भरता है खगकुल का कुंजन

राग अपना सुनाते हैं
झींगुर कहीं पर
आती है सांवली संझा कुछ लजाकर
और आँगन में
मदमाती है रातरानी
हवा में खुशबू छा जाती है बिखरकर

बरसने के पहले
गगन पर उमड़ती
उन काली घटाओं का लहराता दामन
चाँदनी को छुपाये
उतरती है यामिनी
बूँदों की रिमझिम से भरता है आँगन

फूलों और पातों से
माँगता है विदाई
इठलाती बहारों का दामन पकड़ कर
भिगोकर के
मखमली चूनर धरा की
अब रो रहा सावन उससे लिपट कर.

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