आजाद होकर लोग अपने होश खो रहे हैं
आजाद वतन में जहर के बीज बो रहे हैं l
जिन्हें पता नहीं क्या फर्ज बनते उनके
वो डोर थामे मुल्क की दिन में सो रहे हैं l
तूफां में घिरे मांझी ख्वाबों को देखते हैं
कामूस में कश्ती को वो खुद डुबो रहे हैं l
जीने के लिये चाहिये जिनको सुकूं थोड़ा
सहकर मुसीबतें को वो मुर्दे से हो रहे हैं l
मजबूर हैं मजदूर जो सीने पे रखे पत्थर
मालिकों के दिल तो पत्थर के हो रहे हैं l
अपने वतन की बचाई आबरू जिन्होंने
शान उनकी लोग कालिख से धो रहे हैं l
यहाँ हर तरफ फैले हैं गुनाहों से भरे मंजर
हर दिन खुदा के नाम पर अंधेर हो रहे हैं l
न भरोसा इन्सान के इरादों का यहाँ कोई
बिन बात ही कुछ लोग यहाँ उदू हो रहे हैं l
नैतिकता की करीं थीं जिन्होनें कभी बातें
अब मकबूल होकर वही बदकार हो रहे है l
न जमाना है नेकी का न है सिफत इसकी
लूटकर खुलेआम लोग गाफिल हो रहे हैं l
वतन का मुस्तकबिल ना हुआ मुकम्मल
पर मुद्दों पर लोग लम्बी तकरीर दे रहे हैं l
vartamaan vidambanaon par sundar likha hai!!!
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