रंग बिखरा सांवला गोधूलि बेला में
खामोश सी दिशायें हो रहीं हैं अनमनी
पंखुड़ियाँ फूलों की बिखर गईं टूटकर
झकझोरती है पेड़ों को पवन सनसनी l
तड़ाग की जलराशि में ना कोई हलचल
मूंदकर आँखों को अब सोई है कुमुदिनी
दिन ढले ही शाम का आँचल फिसलता
अब रात की पलकें भी हो रही हैं घनी l
आकाश पर मुस्कुराता है चाँद मंद-मंद
शाखों में कहीं होगी उलझी सी चाँदनी
आँचल संभाल अपना काजल को डाल के
तारों की रोशनी में ठिठकी है यामिनी l